लङाई में सहायता

भारत में काफी ज़्यादा लोग है। इस्की तुल्ना में पैसे और काम काफी कम है। आपस में लङाइयाँ होना स्वाभाविक है। इन लङाइयों का अनुभव हम सब कर चुके हैं।

हम सभी इस बात से भी वाकिफ है की किन्ही दो लोगों के बीच लङाई जब हद से अधिक बढे तब जीत तीसरे की ही होती है। इन स्थितीयों का फायदा लेकर ही भारत को सक्षम और आत्मनिर्भर होने से रोका जाता है। इन बङे स्थर की दिक्कतों का द्रीष्य एक आम आदमी की गरीबी में दिखाई पङता है।

किंतू इन लङाईयोँ की नीतियों में भी स्थर होते है। अलग-अलग स्थर की नीतियाँ अलग-अलग लङाईयों में काम आती है। कौटील्य - अर्थशास्त्र में यह बातों का बार-बार उल्लेख है की राजा अन्य राज्यों के खिलाफ कोई भी नीति का प्रयोग कर सकता है क्योंकी प्रजा की रक्षा करना उस्का कर्तव्य है। पर यदि उन्ही राजनीतीयों का प्रयोग एक सामान्य नागरीक करे आपस में तो राज्य में अर्थव्यवस्था सक्षम नही रेहती जिस कारण से राजा निर्बल हो जाता है।

क्या हम सभी सदा एक दूसरे को पीछे खींच्ते रहेंगे। क्या हम कोशीष करने वाले भारतीयों से जानकर भी अंजान बनकर उन्का मनोबल हर लेंगे? हम हमारे छोटे-मोटे भारतीय दुश्मनों के साथ भी कुछ लेन-देन रख सकते है। हमें उनपे पूरा भरोसा करने की ज़रुरत नहीं। हम ऐसे हालातों को रच सक्ते है जहाँ भरोसा रखना ही ना पङे।

आइए, हम सब अपने कर्मों को जाँचकर समाज के साथ इंसाफ करें।
आइए, हम व्यवहार में कर्मों को देखकर हर आदमी के देव को जगाएँ।
आइए, हम सब समझें की किस किस्म की लङाईयों में किस किस्म की नीतियों का प्रयोग किया जाता है।

भारत माता की जय।
आप सभी देवों-देवीयों को गणतंत्र दिवस की शुभकाम्नाएँ।

सागर आचार्य
२६ जन्वरी २०२२